लेखनी कहानी -22-Feb-2022 चाय की टपरी
शीर्षक = चाय की टपरी
सुबह के ९ बजे । Late night tea corner के आस पास काफी भीड़ लगी होती है । कुर्सियां बिछी होती है । स्टेज पर खडा एक आदमी जो की उस tea corner की बोली लगवा रहा होता है नीलामी मैं।
एक एक करके सारे लोग अपनी अपनी बोलिया लगाते है। तभी एक प्रेस रिपोर्टर अनिल की नज़र एक कोने पर पड़ती है । जहा एक पचास या पचपन साल का एक बुजुर्ग आदमी उखडू पांव बेठे होते है और बडी प्यार भरी नजरो से आंखो में आंसू लिए उस tea corner को देख रहे होते है ।
अनिल उस बूढ़े आदमी को पहचानने की कोशिश करता है । और पास जाकर कहता है । आपका नाम हरिशंकर प्रसाद हैं ना जिनकी यही कही एक चाय की टपरी होती थी । १० साल पहले मैं यहां आया था।
हा बेटा मेरा नाम ही हरिशंकर है । चाचा आपने मुझे पहचाना मै आपकी दुकान पर आया था १० साल पहले । आपने मुझे चाय और कुछ बिस्कुट दिए थे। लेकिन जब मैंने पर्स निकाला तो पता चला की वो चोरी हो गया। और मुझे शहर जाना था एग्जाम देने के लिए।
हा बेटा याद आया तुम रो रहे थे और कह रहे थे । मेरी साल भर की मेहनत बेकार चली गई । मेरा सपना टूट गया। हरिशंकर कहता है
हा चाचा उस दिन अगर आप मुझे अपने गल्ले से निकाल कर पैसे नही देते तो मैं वो दाखिले की परीक्षा ना दे पाता और आज इस मकाम पर नही पोहोच पाता।
मै शहर जा कर पढाई मै व्यस्त हो गया मुझे याद ही नही रहा की मैं किसी का कर्ज दार हू । कोई बात नही बेटा तुम आज पढ़ लिख गए और इस बूढ़े को क्या चाहिए।
ये तो आप का बढ़पपन है । वैसे चाचा आपकी वो चाय की टपरी कहा गई। अनिल पूछता है।
बेटा जिस जगह तुम आए हो उसी की आज नीलामी है हरिशंकर कहता है।
क्या ? चाचा ये तो कुछ और है । आपकी टपरी का तो कुछ प्यारा सा नाम हुआ करता था । याद नही आ रहा मुझे ।अनिल कहता है।
स्वागत चाय की टपरी हरिशंकर कहता है।
जी चाचा यही नाम था। ये आपकी वही चाय की टपरी है लेकिन ये तो किसी बार की तरह लग रहा है या फिर किसी अय्याशी के अड्डे जैसा ।
हा बेटा ये वही चाय की टपरी है जहा से अमीर गरीब फकीर लाचार मजबूर भूखे पेट नही जाते थे सब अपनी क़िस्मत का खाके जाते । हरिशंकर कहता है।
फिर चाचा क्या हुआ इन सालो मै की इसकी काया ही पलट गई। किसी ने आपसे जबरदस्ती छीन ली । या आपने बेच दी मुझे बताए मै आपके बेटे की तरह हू। अनिल कहता है।
नाम मत लो उस हरमखोर का मेरे सामने तुम उसको अपने साथ मत तोलो तुम एक अच्छे लड़के हो और वो लालची इंसान जो अपने लालच के चक्कर मै आज जैल मै है। हरिशंकर गुस्से मै कहता है।
तुम जानना चाहते हो ना की आखिर क्यू ये चाय की टपरी आज नीलाम हो रही है। जिसे मैने खून पसीने से सींचा था।
जी चाचा बिलकुल क्या पता मै आपके कुछ काम आ सकू । और इस तरह आपका एहसान भी उतार सकू। अनिल कहता है।
तो सुनो ।
ये चाय की टपरी मेरे पिताजी ने मुझको करवा कर दी थी । और उसका नाम उन्होंने ही स्वागत चाय की टपरी रखा था।
ताकि कोई भी अमीर , गरीब , मजबूर , लाचार , किसी भी धर्म या जाती का , किसी भी समाज का बच्चा या बूढ़ा बिना हिच किचाय मेरी इस टपरी पर आकर अपनी भूख मिटा सके । क्योंकि मेरे पिता जी का मानना था की भूखे का कोई धर्म नही होता ना वो किसी को कुछ नुकसान पहुंचा सकता है ना फायदा उसकी चाह सिर्फ पेट भर खाना होता है ।
पहले तो मैं सिर्फ चाय ही बेच ता लेकिन धीरे धीरे मैने खाना बना कर बेचना शूरू कर दिया । आगे फैक्ट्री मै काम करने वाले मजदूर यही पर ही खाना खाते कुछ पैसे देते कुछ नही उनको मै भगवान के खाते से खिला देता । फिर भी मेरे पास बोहोत पैसा बच जाता शाम को
सुबह को स्कूल के बच्चे भी यही चाय पीकर जाते । चाय की टपरी सभी तरह के लोगो से भरी रहती । अमीर गरीब सब एक ही छत के नीचे चाय पीकर अपने अपने कामों पर जाते।
कोई भी मेरी चाय की दुकान पर आने से नही घबराता मै सभी धर्म और जाती के लोगो का सम्मान करता तो वो भी मेरा आदर करते । मैने कभी उन लोगो मै कोई फर्क नही करा । क्योंकि उन सब लोगो के तालमेल की वजह से ही मेरी चाय की टपरी अच्छी चल रहीं थी । और मेरा काफी मुनाफा होता । कोई भी इन्सान मेरे यहां से भूखा नही जाता । भगवान की बडी किरपा थी मुझ पर
मेरा बेटा आशुतोष जो की शहर मै पढ़ाई कर रहा था अच्छे कॉलेज से। लेकिन वो शूरू से ही पैसे का लोभी था । वो बिलकुल भी मुझ पर या अपनी मां पर नही गया था ।
फिर कुछ साल बाद जब मेरा बेटा आशुतोष यहां आया । और उसने मुझे इस तरह करता देखा की मैं गरीबों लचारो को मुफ्त मै खिला देता हू बिना कुछ लिए। तब उसने मुझे ऐसा करने से रोका लेकिन मैं नही माना ।
फिर मैं बीमार पढ़ गया कुछ अरसे के लिए जिस वजह से उसने उस चाय की टपरी पर कब्जा कर लिया ।
और धीरे धीरे उसने उस टपरी को अपने हिसाब से बना लिया। और सजा दिया । उसने वहा मजदूरों को आने से रोकना शुरू कर दीया क्योंकि वो बोहोत कम पैसे देकर जाते थे।
उसके बाद उसने लाचार और मुफ्त मे खाने वालो को भिकारी कह कर उनका सबके सामने अपमान किया । उसने पैसे के लालच मै सारी चीजे महंगी कर दी । जिससे सिर्फ वहा अमीर ही आ सके गरीब भूल कर भी ना भटके।
उसके बाद उसने उसका नाम late night tea corner रख दिया । उसका लालच और बढ़ा उसने वहा शराब भी रख ली । मेरी पाक साफ जगह जहा कभी भगवान का बसेरा होता था उसने उस शराब बेच कर अशुद्ध कर दिया।
अमीरों की महफिल लगाता पेसो के लालच मै जुआ होता रात को फिर कही से उसने कुछ लड़कियां मंगा ली उन अमीरों को खुश कर के पैसा ऐठने के लिए।
मै ने उसे समझाया कि ये गलत काम ना करें । भगवान सब देख रहा है ये पैसा सारा हराम का है । एक दिन तू उसकी पकड़ मै आ जायेगा । लेकिन उसने एक ना सुनी
और एक दिन जब रात मैं जब जुआ , शराब और अय्याशी चल रही होती है तब पुलिस वहा आन कर उसे सील कर देती और सब को पकड़ कर जैल मै डाल देती है।
मेरे बेटे को ६ महीने की जैल हो गई। उसने बोहोत से लोगो से कर्जा ले रखा था मुझे बताए बिना। उन सब ने हमें बोहोत परेशान किया जिसकी वजह से अब हम इसको नीलाम कर रहे है बेटा। बस यहीं कहानी थी कि कैसे एक साधारण सी चाय की टपरी एक गलत आदमी के हाथो में जा कर अय्याशी का अड्डा बन गई।
चाचा बोहोत अफसोस हुआ ये सुन कर लेकिन मैं वादा करता हू आपको आपकी वही पुरानी चाय की टपरी लोटा कर दुंगा मुझे नही पता केसे लेकिन मुझे वापस करना है आपको
बोली लग रहीं होती है पच्चीस लाख । तभी अनिल कहता है तीस लाख । उसके आगे किसी ने कोई बोली नही लगाई । बेटा इतनी रकम कहा से लाओगे दस दिन के अंदर तुमको ये पैसे देना होंगे नही तो तुम पर केस हो जायेगा।
आप फिकर ना करें चाचा आप का बोहोत बडा एहसान हैं मुझ पर कुछ भी हो जाए ये टपरी तो पहले जैसी बना कर रहूंगा।
तभी वो मोबाइल निकाल कर अपने दोस्तों रोहन, शिमायला, अजय , फारूक और भी ना जाने सब को बुलाकर पुरी बात बताता सब उसकी उस पहल मे साथ देते।
वो एक वीडियो बनाते और उसमें पेसो से मदद करने को कहते देखते ही देखते वायरल हो चली और दो दिन बाद उनके पास चालीस लाख रुपए जमा हो गए।
उन्होंने पैसे देकर । अपने दोस्तों के साथ मिल कर दोबारा से उसे पुरानी वाली स्वागत चाय की टपरी मैं तब्दील कर दिया देखते देखते कई महीने गुजर गाए।
आशुतोष रिहा हो चला था। वो रोते हुए हरिशंकर के पैरो मै गिर पड़ा और कहता पिता जी मुझे माफ़ करदो मै पैसे के लालच मै इतना अंधा हो गया था कि भूल ही बैठा था की इसी चाय की टपरी की वजह से मैं आज पढ़ लिख पाया हू उसी को बदलने चला था।
पिता जी आप सही थे कोई भी काम सिर्फ एक ही वर्ग या जाती के लोगो से नही चल सकता उसमे जब सभ अपना हिस्सा डाल ते है चाहे वो गरीब हो अमीर हो मजदूर हो या फिर भिखारी तभी वो काम सफल हो पाता है । मुझे जैल मै रहकर समझ आ गई।
मैने माफ़ किया तुमको कल से स्वागत चाय की टपरी पर मेरे बेटे बन कर आना जो की सब को एक बराबर समझता हो
वार्षिक प्रतियोगिता हेतु लिखी कहानी
Ali Ahmad
05-Mar-2022 07:49 PM
Nice
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Inayat
05-Mar-2022 01:30 AM
Sundar kahani
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Arshi khan
03-Mar-2022 06:25 PM
Bahut khoob
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